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बीए सेमेस्टर-3 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2649
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 प्राचीन भारतीय इतिहास

प्रश्न- पृथ्वीराज तृतीय के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी सफलताओं एवं असफलताओं परं विस्तृत लेख लिखिए।

अथवा
तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय की पराजय से चाहमानों की राजसत्ता का अन्त नहीं हुआ वरन यह सम्पूर्ण भारत के लिये घातक था। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
अथवा
पृथ्वीराज चौहान - मोहम्मद गोरी के मध्य निर्णायक तराइन युद्ध की व्याख्या कीजिए।
अथवा
'पृथ्वीराजरासो' के आधार पर पृथ्वीराज चौहान का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
पृथ्वीराज चौहान के चरित्र का वर्णन कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. पृथ्वीराज तृतीय कौन था?
2. पृथ्वीराज तृतीय पर टिप्पणी लिखिए।
3. "पृथ्वीराज तृतीय एक महान योद्धा था।' पुष्टि कीजिए।
4. पृथ्वीराज चौहान के राज्यकाल की प्रमुख घटनाएँ लिखिए।
5. चाहमान शासक पृथ्वीराज तृतीय की महानता का मूल्यांकन कीजिए।
6. पृथ्वीराज चौहान के राज्यकाल का इतिहास लिखिए।
7. पृथ्वीराज तृतीय के साथ जयचन्द के सम्बन्धों का विवरण दीजिए।
8. चाहमान सत्ता के पतन पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
9. तराइन का प्रथम युद्ध कब हुआ था? समझाइए।
10. सन् 1992 के तराइन के द्वितीय युद्ध का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

चाहमान नरेश पृथ्वीराज तृतीय ( 1177-1192 ई.)

पृथ्वीराज के पिता का नाम सोमेश्वर तथा माता का नाम कर्पूरदेवी था। उसका जन्म अन्हिलवाड़ में सम्भवतः सन् 1166 ई. में हुआ था। उसकी अल्पायु में ही सोमेश्वर का देहान्त हो गया। अतः राजा बनने के पश्चात् भी उसे कुछ समय तक अपनी माता कर्पूरीदेवी की संरक्षता में ही शासन करना पड़ा। पृथ्वीराज विजय में उस सम्बन्ध में जो उल्लेख है, उससे यह स्पष्ट है कि अपने पुत्र की अल्प व्यवस्था में उस राजमाता ने शासन सत्ता का भली-भाँति संचालन किया। किन्तु इसका आधा श्रेय पृथ्वीराज के मुख्यमन्त्री महामण्डलेश्वर कदम्वास (कैमास अथवा कैम्बवास) को भी प्राप्त होना चाहिए। इसके ही परामर्शो से कर्पूरीदेवी सफल हुई। कदम्वास के अतिरिक्त कर्पूरीदेवी के पिता अचलराज का भाई भुवनैकमल्ल भी उस समय एक परामर्शदाता और सहायक था। सम्बन्धित साक्ष्यों में इन दोनों के पृथ्वीराज के प्रारम्भिक युद्धों में उसे सफलता दिलाने का अधिकांश श्रेय दिया गया है। कहा जाता है कि उन्होंने पृथ्वीराज की उसी प्रकार सेवा की जिस प्रकार हनुमान और गरुड़ ने राम की की थी।

चरित्र-चित्रण - पृथ्वीराज चौहान अपने वंश का प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली शासक था। उसकी राज्यसभा में प्रसिद्ध कवि चन्दबरदायी निवास करते थे जिन्होंने 'पृथ्वीराजरासो' नामक महाकाव्य की रचना की थी। 'पृथ्वीराजरासो से पृथ्वीराज चौहान के चरित्र पर प्रकाश पड़ता है। उसने विविध विधाओं तथा कलाओं में शीघ्र ही निपुणता प्राप्त कर ली थी। वह अपने समय का एक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर था। रासो काव्य के अनुसार पृथ्वीराज चौहान छोटे-छोटे युद्ध तो अकेले ही लड़ लेता था तथा उनमें विजय हासिल करता था। वह एक कुशल कूटनीतिज्ञ शासक था। उसने अपनी कूटनीति से कई राज्यों को अपने अधीन कर लिया था। वह कला का प्रेमी था, उसने अपने यहाँ अनेक कलाकारों को उच्च पदों पर नियुक्त किया था। वह एक वीर योद्धा था जिसने 16 बार मुहम्मद गोरी को हराया था। वह उदार हृदय का था। उसने गोरी को युद्ध में बन्दी बना लिया था लेकिन अपनी उदारता के कारण उसे बाद में मुक्त कर दिया था। वह अपने यहाँ आये शरणागत की जान पर खेलकर रक्षा करता था।

इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान कुशल साम्राज्यवादी प्रशासक, वीरा योद्धा तथा सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने के साथ-साथ विद्वानों का संरक्षक तथा उदार हृदय वाला था। यद्यपि वह एक वीर तथा योग्य सेनापति था, परन्तु उसमें राजनीतिक दूरदर्शिता का अभाव था। यही कारण था कि वह अत्यन्त शक्तिशाली होते हुए भी गोरी से पराजित हो गया।

राजनैतिक उपलब्धियाँ

'पृथ्वीराजरासो' से ज्ञात होता है कि जब पृथ्वीराज अवयस्क था तभी उसके पिता की मृत्यु हो गयी जिससे शासन का कार्यभार कुछ समय तक संरक्षिका के रूप में उसकी माता ने सम्भाला। 1180 ईस्वी के लगभग पृथ्वीराज वयस्कता को प्राप्त हुआ तथा शासन का भार उसने स्वतन्त्र रूप से ग्रहण किया। राजा होने के पश्चात् वह अपनी शक्ति एवं साम्राज्य के विस्तार में जुट गया। 

नागार्जुन के विद्रोह का कठोर दमन - सन् 1180 ई. के लगभग वयस्क होने पर पृथ्वीराज ने शासन सत्ता पूर्ण रूप से अपने हाथ में ले ली। जयानक के अनुसार उसके उत्तराधिकार को नागार्जुन नामक किसी महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने चनौती दी। ऐसा विचार स्पष्ट किया गया है कि यह नागार्जुन विग्रहराज चतुर्थ वीसलदेव का पुत्र और अमर गांगेत्र का छोटा भाई था। यह पृथ्वीराज की अल्प व्यवस्था का लाभ उठाकर राज्य सिंहासन प्राप्त करना चाहता था। बाद के कुछ साक्ष्यों में तो यहाँ तक कहा गया है कि वह अजमेर का शासक था। किन्तु इस सम्बन्ध में पृथ्वीराज के राजदरबारी कवि और ऐतिहासिक दृष्टि से विश्वसनीय जयानक का कथन है कि नागार्जुन ने गडपुर नामक नगर पर अधिकार कर लिया। किन्तु वहाँ वह पृथ्वीराज के घेरेबन्दी का शिकार बना। कुछ समय तक घिरे रहने के उपरान्त वह तो अपनी जान बचाकर निकलकर भाग गया, किन्तु उसके सभी सगे सम्बन्धियों को बन्दी बना लिया गया। 

चन्देल राज्य पर आक्रमण - जिनपाल द्वारा रचित खरतरगच्छ पट्टावली के अनुसार सन् 1182 ई. में पृथ्वीराज अपनी दिग्विजय में व्यस्त था। सच्चे प्राचीन भारतीय राजनीतिक अर्थ में उसने कोई दिग्विजय की अथवा नहीं, इसको तो निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता, किन्तु अनेक समकालीन साक्ष्यों और परवर्ती ग्रन्थों से यह ज्ञात होता है कि आस-पास की सभी प्रमुख राजनीतिक सत्ताओं में वैसी प्रतिद्वन्द्विताएँ थीं, जो प्रायः छोटे बड़े युद्धों में अभिव्यक्त हुई। उन शत्रु सत्ताओं में चन्देल भी एक थे। चन्देलों से पृथ्वीराज का स्वतन्त्र रूप से शासनसूत्र सम्भालने के कुछ समय उपरान्त ही संघर्ष हुआ। इस सम्बन्ध में पृथ्वीराज रासो के आल्हाखण्ड के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पृथ्वीराज चन्देल क्षेत्रों को चीरता हुआ केवल सिरसागढ़ और महोबा तक ही नहीं चढ़ गया वरन् उसने कालिंजर के प्रसिद्ध दुर्ग को घेरकर परमाल को भी बन्दी बना लिया। उसे बन्दी के रूप में पृथ्वीराज के सामने प्रस्तुत किया गया। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि आल्हा और ऊदल नामक दो बनाफर सरदारों के साथ गहड़वाल नरेश जयचन्द की एक सैनिक टुकड़ी ने भी महोबा के युद्ध में चन्देलों की सहायता की थी।

किन्तु जैजाकभुक्ति पर पृथ्वीराज के आक्रमण का कोई स्थाई परिणाम नहीं निकला। उसके मदनपुर के अभिलेखों से बेतवा नदी के पार महोबा के निकटवर्ती क्षेत्रों पर उसके अधिकार को जो तिथि सन् 1182-83 ई. ज्ञात होती है वही तिथि परमाल रासो में उसके आक्रमण की भी दी हुई है। किन्तु उस तिथि के एक दो वर्षों के अन्दर ही कालिंजर और महोबा दोनों ही स्थानों पर परमार्दिन के अधिकार के सूचक अभिलेख प्राप्त होते हैं। अतः यह निश्चित है कि थोड़े से चन्देल क्षेत्रों पर जो चाहमान सत्ता स्थापित हो गई थी, वह शीघ्र ही समाप्त हो गई थी।

भाडानक विजय - चाहमान राज्य की उत्तर दिशा में स्थित भाडानक क्षेत्रों पर पृथ्वीराज का आक्रमण अधिक लाभकारी और परिणामकारी सिद्ध हुआ। डॉ. दशरथ शर्मा ने पद्मप्रभसूरि और जिनपति सूरी नामक दो जैन आचार्यों के पारस्परिक शास्त्रार्थ का उल्लेख करतें हुए जिन पदसूरि के दो श्लोकों का उल्लेख किया है। इन श्लोकों की रचना पृथ्वीराज की भडानकों पर विजय के उपलक्ष में सन् 1182 ई. में की गई थी। अतः पृथ्वीराज ने इस विजय को इस तिथि से पूर्व ही प्राप्त कर लिया होगा। भाडानक प्रदेश आधुनिक हरियाणा प्रान्त की रेवाड़, गुड़गाँव और भिवानी तहसीलों और राजस्थान के अलवर क्षेत्र के मध्य का प्रदेश था। इस समय भाडानकों का शासक साहणपाल था और पृथ्वीराज ने इसी पर विजय प्राप्त की थी। इन साहणपाल का एक अभिलेख अघाटपुर नामक स्थान पर प्राप्त हुआ है।

चालुक्यों से संघर्ष - जैन साहित्य और राजकवि चन्दबरदाई की रचना पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज और अणिहलवाड के शासक भीम द्वितीय के बीच छुटपुट संघर्ष का उल्लेख कई स्थानों पर प्राप्त होता हैं, किन्तु सबका विश्लेषण करने के उपरान्त भी इस सम्बन्ध में तथ्यों को निश्चित तैथिकक्रम से बता सकना अत्यन्त कठिन है। पृथ्वीराज रासो दोनों पक्षों के होने वाले संघर्षों की तिथि, उनके ब्यौरे और उनके परिणाम के सम्बन्ध में आश्चर्यजनक ढंग का अनैतिहासिक विवरण प्रस्तुत करता है। इसके अनुसार चाहमान राजसभा में अपने कुछ स्वजनों के मारे जाने से अप्रसन्न होकर भीम चालुक्य ने चाहमान राज्य पर आक्रमण करके युद्ध में सोमेश्वर की हत्या कर दी तथा नागौर के दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया।

चाहमान गहड़वाल सम्बन्ध - जनश्रुतियों में पृथ्वीराज की इन विजयों की अपेक्षा कन्नौज के गहड़वाल नरेश जयचन्द्र से उसके सम्बन्धों तथा मुहम्मद गोरी के साथ उसके युद्धों ही की अधिक कथाएं मिलती हैं। सर्वप्रथम जयचन्द्र के साथ उसके सम्बन्धों की व्याख्या की जा रही है। यह तो निश्चित है कि उन दोनों के पारस्परिक राजनीतिक व्यवहार एक-दूसरे के प्रतिस्पर्द्धा थे। किन्तु पृथ्वीराज रासो की संयोगिता स्वयंवर की कथा में कितनी ऐतिहासिकता है इस प्रश्न पर विद्वानों में मतभेद है। यह वृत्तान्त पृथ्वीराज विजय, हम्मीर महाकाव्य और प्रबन्ध चिन्तामणि जैसे ग्रन्थों में नहीं मिलता, किन्तु 'सुर्जनचरित' और 'आईने-अकबरी' में उपलब्ध है। निःसन्देह पृथ्वीराज रासो के विभिन्न विवरणों के अन्तर स्थलों में ठोस ऐतिहासिक तथ्य छिपे हुए हैं और यह असम्भव नहीं है कि जयचन्द्र की संयोगिता नामक कोई पुत्री रही हो, जिसके हृदय में पृथ्वीराज की वीरताओं का समाचार मात्र सुनकर प्रेम भावनाएं उत्पन्न हो गई हों।

पृथ्वीराज रासो के उपरोक्त विवरण में कितनी सत्यता है अथवा कितनी काल्पनिकता है, यह बताना सरल कार्य नहीं है। इस युग में प्रायः स्वयंवरों के अधिक उदाहरण नहीं मिलते, परन्तु यह असम्भव नहीं है कि जयचन्द्र का ध्यान किसी धार्मिक सामाजिक कार्य में लगे रहने के बीच पृथ्वीराज ने तीव्रगति से उस पर आक्रमण किया हो और उसकी सेनाओं को बुरी तरह परास्त करके प्रेमातुर संयोगिता को ले भागा हो। इस काल में चुपके से शत्रु राजधानियों तक चढ़ आने के अन्य उदाहरण मिलते हैं। जो भी हो जयचन्द्र उत्तरी भारत की सर्वप्रमुख सत्ता बनने के लिए उतना ही उत्सुक और प्रयत्नशील था जितना पृथ्वीराज। दोनों ही राज्यों की पारस्परिक सीमाएं मिलती थीं और गहडवाल राज्य पर चाहमान सत्ता के दबाव की समस्या जयचन्द्र के सामने सदैव ही बनी रही होगी। हसननिजामी का कथन है कि पृथ्वीराज के हृदय में विश्वविजय जैसी कोई भावना भूत के समान घर कर गई थी। इस स्थिति को शान्तिपूर्वक देखते रहना जयचन्द्र जैसे शक्तिशाली और महत्वाकांक्षी व्यक्ति के लिए असहनीय था और संयोंगिता को जबरदस्ती भगा ले जाना उसके लिए जले पर नमक के समान सिद्ध हुआ होगा। परिणाम केवल उन्हीं दोनों के लिए घातक नहीं हुआ वरन् यह सम्पूर्ण देश के लिये भी घातक सिद्ध हुआ।

मोहम्मद गोरी से युद्ध और चाहमान सत्ता का पतन - यथार्थ में चाहमानों का सम्पूर्ण इतिहास ही तुर्कों से संघर्ष का इतिहास है। चाहमान नरेश विग्रहराज चतुर्थ के अभिलेखों में "आर्यावर्त की तुर्क म्लेच्छों से रक्षा कर उसे वास्तव में आर्य भूमि बनाने का श्रेय दिया गया है और ज्यानक भट्ट गोमांस भक्षी म्लेच्छ के रूप में कलियुग की प्रत्यक्ष मूर्ति मोहम्मद शिहाबुद्दीन गोरी के जीवन का अन्त करना पृथ्वीराज के जीवन का लक्ष्य बताता है। किन्तु तत्कालीन भारतीय समाज और संस्कृति की रक्षा का उत्तरदायित्व सम्भालने वाले उस चाहमान नरेश में जितनी वीरता, उत्साह और अपनी आन पर मर मिटने की जितनी सतत तत्परता थी, उतनी राजनीतिक बुद्धिमत्ता नहीं थी। यद्यपि उस समय के प्रमुख भारतीय नरेशों में वह इस दोष का अकेला दोषी नहीं था, सामन्तों पर स्थित होने के कारण सम्भवतः उसको मुख्य रूप से उत्तरदायी माना जा सकता है। शिहाबुद्दीन गोरी ने सन 1173 ई. में गजनी पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया और उसके दो वर्षों के भीतर ही वह भारत की ओर भी लालायित नेत्रों से देखने लगा। सन 1175 ई. में मुल्तान और उच्छ पर अधिकार करने के उपरान्त उसने सर्वप्रथम अपना मुख्य आक्रमण सन् 1178 ई. में गुजरात पर किया। मार्ग में उसने किरादू और नाडौल को भी लूटा किन्तु चालुक्यों ने सम्भवतः चाहमानों से सहायता माँगी थी किन्तु अपने मन्त्री कदम्बवास के विरोधी होने के कारण पृथ्वीराज ने न तो नाडौल के चाहमानों की ही कोई सहायता की और न ही चालुक्यों की इस उदाहरण से उस समय के मन्त्रियों में दूरदृष्टि के अभाव का ही परिचय मिलता है। परन्तु एक शासक होने के नाते पृथ्वीराज का इस सम्बन्ध में उत्तरदायित्व और भी अधिक था।

पृथ्वीराज तृतीय : एक महान योद्धा के रूप में

दिल्ली और अजमेर का शासक चौहान वंशी पृथ्वीराज तृतीय उर्फ रायपिथौरा था। उत्तर भारत के राजपूत शासकों में वह सर्वाधिक साहसी और महत्वाकांक्षी था। उसके पिता पृथ्वीराज द्वितीय ने अपने राज्य को पर्याप्त शक्तिशाली बनाया था, 'रायपिथौरा ने उसमें अधिक वृद्धि करने का प्रयास किया। परन्तु अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण उसे अपने पड़ोसी राजपूत राजाओं से संघर्ष करना पड़ा और प्रायः सभी से उसकी शत्रुता हो गयी थी, गुजरात के चालुक्य वंशी राजा को पराजित तथा अपमानित किया था। बुंदेलखण्ड के चन्देल शासक परमर्दीदेव (राजा परमाल देव) को परास्त करके उसने उससे महोबा छीन लिया था और कन्नौज के गहरवार शासक जयचन्द्र की पुत्री संयोगिता से बलपूर्वक विवाह करके घोर शत्रुता मोल ले ली थी, पृथ्वीराज तृतीय अपने युग का एक महान साहसी योद्धा सेनानायक था, परन्तु उसमें दूरदर्शिता नहीं थी और राजनीतिकता का अत्यधिक अभाव था, इसी कारण अपने तुर्की शत्रु के विरुद्ध वह अपने किसी भी पड़ोसी राज्य से सहायता प्राप्त नहीं कर सका था। 

तराइन का प्रथम युद्ध - 1190-91 ई. में पृथ्वीराज पर मोहम्मद गोरी ने प्रथम बड़ा आक्रमण किया। मिनहाजुद्दीन के अनुसार "सुल्तान ने इस्लाम की सेनाओं का संगठन कर तबर हिन्द के किले पर आक्रमण कर दिया तथा उसे जीतकर मालिक जियाउद्दीन की निगरानी में रख दिया। यह दुर्ग पृथ्वीराज के राज्य का ही कोई दुर्ग था परन्तु इसके समीकरण के सम्बन्ध में दो मतभेद हैं। तादीखे - फरिश्ता तथा कुछ अन्य मुसलमानी ग्रन्थों के आधार पर उसकी प्रथम पहचान भटिण्डा से की गई। किन्तु डॉ. दशरथ शर्मा भौगोलिक दृष्टि के आधार पर उसे रसहिन्द मानते हैं। शिहाबुद्दीन ने जियाउद्दीन को वहाँ का शासक नियुक्त करके 12000 चुने हुए घुड़सवारों सहित अपनी सेना का अधिकांश भाग देकर आठ महीने तक अपने आने की प्रतीक्षा करने की आज्ञा दी। इस बार उसकी योजना गजनी से एक विशाल सेना के वापस आकर चाहमानों पर आक्रमण करने की थी, परन्तु इसी बीच उसे सूचना मिली कि पृथ्वीराज दिल्ली* के राजा गोविन्दराज के साथ एक विशाल सेना के साथ तबर हिन्दाह की ओर अग्रसर हो रहा है। यह सुनकर वह घबरा गया और दिल्ली के निकट कर्नाल जिले में तराइन ( तरावडी ) के क्षेत्र में चाहमान सेनाओं का सामना करने को बाध्य हो गया। 

पृथ्वीराज तृतीय के जयचन्द के साथ सम्बन्ध - इसी काल में जयचन्द की पुत्री संयोगिता के. स्वयम्बर के कारण पृथ्वीराज और जयचन्द में विरोध हो गया था। जयचन्द कन्नौज का शासक था, जो गहड़वाल वंश का शासक था। इसके पिता विजयचन्द थे। पिता की मृत्यु के पश्चात् 1170 ई. में कन्नौज का शासक बना था। स्वयंवर तो मात्र एक प्रतीक था बल्कि जयचन्द तथा पृथ्वीराज चौहान के मध्य पूर्व से दुश्मनी थी, जयचन्द ने इसका बदला चुकाने के लिए स्वयम्वर का आयोजन किया था। पृथ्वीराज को स्वयम्वर का निमन्त्रण नहीं दिया गया था। उसने पृथ्वीराज की प्रतिमा रक्षक के रूप में पाण्डाल के दरवाजे पर लगा दी थी। पृथ्वीराज को यह जानकारी मिल गयी थी, वह उचित समय पर पहुँचा तथा संयोगिता का अपहरण कर दिल्ली राजदरबार में ले गया था। इस अपमान का बदला चुकाने के लिए जयचन्द ने मुहम्मद गोरी को भारत आने का निमन्त्रण दिया था।

किन्तु पृथ्वीराज तराइन का प्रथम युद्ध जीतते हुए भी अन्तिम संघर्ष से पराजित हो गया। उसने भागती हुई मुसलमानी सेना का पीछा न कर उसे पुनः एकत्र दोबारा अपने राज्य पर आक्रमण का अवसर देकर बड़ी भूल की। सम्भवतः भागती हुई सेना का पीछा कर उसे नष्ट-भ्रष्ट करना और घायल शत्रु को पकड़कर उसका काम तमाम कर देना भारतीय युद्ध-संहिता के विपरीत और राजपूतों के आन के विरुद्ध समझकर उसने ऐसा नहीं किया। किन्तु वह इस तथ्य से अनभिज्ञ थे कि शत्रुपक्ष की दृष्टि में इस प्रकार की युद्ध नीति का कोई महत्व नहीं था। पृथ्वीराज ने मोहम्मद गोरी को तराइन के युद्ध क्षेत्र में पराजित कर अपने राज्य और देश की समस्याओं का अन्त मान लिया और स्वयं भोग-विलास में लग गया। यदि पृथ्वीराज रासो का विश्वास किया जाये तो यह मालूम होगा कि उसने इसी समय संयोगिता का अपहरण कर अजमेर के दुर्ग में उसकी भुजाओं का बन्दी बन गया और उसी के साथ अपना सम्पूर्ण समय व्यतीत करने लगा। वह रनिवास से भी बहुत कम बाहर आता था और राज कर्त्तव्यों की उपेक्षा होने लगी। कुछ साक्ष्यों के आधार पर तो यहाँ तक कहा जा सकता है कि गोरी के साथ होने वाली आगामी लड़ाई के पूर्व वह नींद का इतना बड़ा शिकार हो गया कि उसकी बुद्धि ही मन्द हो गई और कोई यदि उसे आवश्यकतावश जगा भी देता तो उसके क्रोध की सीमा न रहती।

सन् 1192 का तराइन का द्वितीय युद्ध - एक ओर पृथ्वीराज की दशा यह थी और दूसरी ओर मोहम्मद गोरी अपनी पराजय को नहीं भूल सका था और उसका प्रतिशोध लेने के लिए पूर्व तैयारी कर रहा था। गजनी पहुँचने पर उसके लिये नींद और आराम हराम हो गया और वह शीघ्र ही एक लाख बीस हजार चुने हुए अफगान ताजिक और तुर्क अश्वारोहियों के अतिरिक्त सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर उसने भारत की ओर प्रस्थान किया और दूसरी बार तराइन के युद्ध क्षेत्र में आ डटा। पृथ्वीराज भी तीन लाख अश्वारोहियों, तीन हजार हाथियों के अतिरिक्त पर्याप्त संख्या में पैदल सैनिकों के साथ युद्ध क्षेत्र में पहुँच गया। इस समय उसके साथ लगभग 150 सामन्त थे। ये सभी गंगाजल की सौगन्ध लेकर विजयी होने अथवा मर मिटने के लिये कृतसंकल्प थे। किन्तु पृथ्वीराज का सबसे बड़ा प्रतिद्वन्द्वी अपने अपमान का घाव धोता रहा और युद्ध से उसी प्रकार अलग रहा जिस प्रकार सन् 1178 ई. में पृथ्वीराज गुजरात के चालुक्यों की सहायता करने से विरत रहा था। इस पर भी पृथ्वीराज भयभीत नहीं हुआ। उसने मोहम्मद गोरी को पत्र लिखा कि वह गजनी वापिस चला जावे तो चाहमान सेनाएं उसे हानि नहीं पहुँचायेंगी, किन्तु मोहम्मद गोरी उससे अधिक चालाक निकला, उसने वह प्रस्ताव अपने भाई के पास गजनी भेजने का बहाना बनाकर पृथ्वीराज को धोखे में डाल दिया। वह शिथिल पड़ गया और हिन्दू सेनाएं युद्ध विराम की स्थिति में निश्चिंत होकर विश्राम करने लगी। उधर गोरी ने अपने सामने वाली सेनाओं को तो नही हटाया, किन्तु पीछे वाली पंक्तियों को नये सिरे से युद्ध के लिए अधिक सुविधाजनक स्थान पर कहीं अन्यत्र हटाने लगा, उनकी सहायता से वह हिन्दू सेना पर चारों ओर से ऐसे समय टूटा, जब सूर्योदय भी नहीं हुआ था और सभी हिन्दू सैनिक अपनी नित्य क्रियाओं में ही लगे हुये थे। उस समय पृथ्वीराज तो सो ही रहा था इस प्रकार युद्ध की स्थिति में एकदम तैयार न रहने के कारण आक्रमण के कारण समस्त हिन्दू सेना तितर-बितर हो गयी। दोपहर बाद लगभग 3 बजे मोहम्मद गोरी ने अपना अन्तिम और भीषणतम आक्रमण किया। हिन्दू सेना में भगदड़ मच गयी। एक लाख सैनिक लड़ते रहे। पृथ्वीराज स्वयं भागते हुए सरस्वती नदी के तट पर पकड़ा गया और उसका सर्वप्रमुख सहायक युद्ध करता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। मोहम्मद गोरी ने आगे बढ़कर अजमेर को लूटा तथा जो बचा उसे नष्ट किया और मन्दिरों को भी नष्ट किया।

कहा जाता है कि तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज की पराजय से गहड़वाल नरेश के हर्ष की सीमा न रही और उसने अपनी राजधानी कन्नौज में दीपावली का उत्सव आयोजित किया। यह उसकी व्यक्तिगत शत्रुता और पृथ्वीराज द्वारा अपमानित किये जाने के कारण क्रोध का एक अपवादात्मक परिचय मात्र हो सकता है। किन्तु इस सम्बन्ध में कि चाहमान राजा के पराजित हो जाने तथा वीरगति को प्राप्त होने पर तत्कालीन अन्य राजाओं के मन में किस प्रकार की भावनाएं उठीं। एक बात स्पष्ट है कि भारतीय धर्म और संस्कृति के मूर्त शत्रु गोरी के विरुद्ध संगठित होकर भारतीय नरेश ने कुछ नहीं किया और वे सभी बारी-बारी से उसकी चक्की में पिस गये। उनमें से अनेक ने अकेले ही उसे पराजित करने में सफलता प्राप्त की थी। संगठित होकर वह गोरी के विरुद्ध एक अभेद्य दीवार खड़ी कर सकते थे। यदि वे ऐसा कर सकते हैं तो सम्भवतः भारत का इतिहास कुछ और ही होता। पृथ्वीराज के साथ शिहाबुद्दीन के विरुद्ध जो भी राजा लड़े थे, वे उसके सामन्त मात्र थे, जिनका उसके लिये युद्ध करना राजनीतिक कर्त्तव्य था। उसे अपने समीपवर्ती सभी हिन्दू राज्यों के प्रति आरम्भ से ही मैत्रीपूर्ण नीति अपनाकर आवश्यक एकता का वातावरण तैयार करना चाहिए था और अपनी सीमा के पार बैठी हुई विपत्ति का पूर्व अनुमान लगा लेना चाहिये था। किन्तु उसने अपने तथा देश के लिये दुर्भाग्य से ऐसा नहीं किया। गुर्जर प्रतिहार ने इस प्रकार की चिन्ता की थी और अरब आक्रमणकारियों को कभी भी सिन्ध के आगे बढ़ने में सफलता नहीं मिली, किन्तु चाहमानों ने ऐसा नहीं किया और सम्पूर्ण उत्तरी भारत पर अफगान छा गये।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने हेतु उपयोगी स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- सन 1909 ई. अधिनियम पारित होने के कारण बताइये।
  3. प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास को जानने में विदेशी यात्रियों / लेखकों के विवरण की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, (1909 ई.) के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1909 ई. के मुख्य दोषों पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में आप क्या जानते हैं?
  8. प्रश्न- 1935 के भारत सरकार अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  9. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  10. प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1935 ई. का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
  11. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  12. प्रश्न- 'भारत के प्रजातन्त्रीकरण में 1935 ई. के अधिनियम ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
  13. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1919 ई. के प्रमुख प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
  15. प्रश्न- अरबों के आक्रमण के समय उत्तर भारत की राजनीतिक दशा का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सन् 1995 ई. के अधिनियम के अन्तर्गत गर्वनरों की स्थिति व अधिकारों का परीक्षण कीजिए।
  17. प्रश्न- हर्षवर्द्धन के इतिहास को समझने में ह्वेनसांग के विवरण हमारी कहाँ तक सहायता करते हैं?
  18. प्रश्न- माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919 ई.) के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- हर्ष की प्रारम्भिक परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए उसकी राजनैतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियाँ बताइए।
  20. प्रश्न- लोकतंत्र के आयाम से आप क्या समझते हैं? लोकतंत्र के सामाजिक आयामों पर प्रकाश डालिए।
  21. प्रश्न- हर्ष के पश्चात् कन्नौज की स्थिति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- लोकतंत्र के राजनीतिक आयामों का वर्णन कीजिये।
  23. प्रश्न- सिन्ध पर अरब आक्रमण के प्रभाव की समीक्षा कीजिए।
  24. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले कारकों पर प्रकाश डालिये।
  25. प्रश्न- कश्मीर के राजनैतिक इतिहास में भाग लेने वाले वंशों का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले संवैधानिक कारकों पर प्रकाश डालिये।
  27. प्रश्न- कश्मीर के शासक ललितादित्य मुक्तापीड के शासनकाल व राजनैतिक सफलताओं के विषय में बताइए।
  28. प्रश्न- संघवाद (Federalism) से आप क्या समझते हैं? क्या भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है? यदि हाँ तो उसके लक्षण क्या-क्या हैं?
  29. प्रश्न- कश्मीर के हिन्दू राज्य का इतिहास हमें किस ग्रन्थ से प्राप्त होता है?
  30. प्रश्न- भारतीय संविधान संघीय व्यवस्था स्थापित करता है। संक्षेप में बताएँ।
  31. प्रश्न- ललितादित्य व यशोवर्मन के मध्य हुए पारस्परिक संर्घष के विषय में बताइए।
  32. प्रश्न- संघवाद से आप क्या समझते हैं? संघवाद की पूर्व शर्तें क्या हैं? भारत के सन्दर्भ में संघवाद की उभरती हुई प्रवृत्तियों की चर्चा कीजिए।
  33. प्रश्न- कन्नौज के शासक यशोवर्मन के प्रारम्भिक जीवन एवं राजनीतिक सफलता के विषय में बताइए |
  34. प्रश्न- भारत के संघवाद को कठोर ढाँचे में नही ढाला गया है" व्याख्या कीजिए।
  35. प्रश्न- यशोवर्मन की मृत्यु के पश्चात् कन्नौज पर अधिकार करने के लिये किन शक्तियों में त्रिकोणात्मक संर्घष प्रारम्भ हुआ? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- राज्यों द्वारा स्वयत्तता (Autonomy) की माँग से आप क्या समझते हैं?
  37. प्रश्न- कन्नौज का यशोवर्मन किस वंश का था? बताइए।
  38. प्रश्न- क्या भारत को एक सच्चा संघ (True Federation) कहा जा सकता है?
  39. प्रश्न- यशोवर्मन के शासनकाल के विषय में बताते हुए उसके दरबार के विद्वानों तथा उत्तराधिकारियों के नाम बताइए।
  40. प्रश्न- संघीय व्यवस्था में केन्द्र शक्तिशाली है क्यों?
  41. प्रश्न- त्रि-शक्ति संघर्ष के विषय में लिखिए।
  42. प्रश्न- क्या भारतीय संघीय व्यवस्था में गठबन्धन की सरकारें अपरिहार्य हैं? चर्चा कीजिए।
  43. प्रश्न- सिंध राजवंश के विषय में विस्तृत रूप से बताइये।
  44. प्रश्न- क्या क्षेत्रीय राजनीतिक दल भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए संकट है? चर्चा कीजिए।
  45. प्रश्न- सिंध पर अरबों की सफलता के क्या कारण थे?
  46. प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के गठन में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  47. प्रश्न- "चचनामा" के विषय में संक्षिप्त रूप से बताइये।
  48. प्रश्न- भारत में गठबन्धन सरकार की राजनीति क्या है? गठबन्धन धर्म से क्या तात्पर्य है?
  49. प्रश्न- दाहिर व मोहम्मद बिन कासिम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  50. प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
  51. प्रश्न- सिन्ध के इतिहास को संक्षिप्त रूप से अवगत कराइये।
  52. प्रश्न- राजनीतिक दलों का वर्गीकरण करें। दलीय पद्धति कितने प्रकार की होती है? गुण-दोषों के आधार पर विवेचना कीजिए।
  53. प्रश्न- अरोड़ की लड़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  54. प्रश्न- दलीय पद्धति के लाभ व हानियाँ क्या हैं?
  55. प्रश्न- राजपूतों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न मतों की विवेचना कीजिए।
  56. प्रश्न- भारतीय दलीय व्यवस्था में पिछले 60 वर्षों में आए परिवर्तनों के कारणों की चर्चा कीजिए।
  57. प्रश्न- राजपूतकालीन सामाजिक संरचना का वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- आर्थिक उदारवाद के इस युग में भारत में गठबंधन की राजनीति के भविष्य की आलोचनात्मक चर्चा कीजिए।
  59. प्रश्न- राजपूतों की अग्निकुण्ड से उत्पत्ति के विषय में बताइए।
  60. प्रश्न- दलीय प्रणाली (Party System) में क्या दोष पाये जाते हैं?
  61. प्रश्न- अलबरूनी के भारत विवरण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
  63. प्रश्न- राजपूतों के स्थानीय प्रशासन पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय दलों के उदय एवं विकास के लिए उत्तरदायी तत्व कौन से हैं?
  65. प्रश्न- राजपूत काल में साहित्य की प्रगति की समीक्षा कीजिए।
  66. प्रश्न- 'गठबन्धन धर्म' से क्या तात्पर्य है? क्या यह नियमों एवं सिद्धान्तों के साथ समझौता है?
  67. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति से सम्बन्धित विभिन्न सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिए।
  68. प्रश्न- क्षेत्रीय दलों के अवगुण, टिप्पणी कीजिए।
  69. प्रश्न- नागभट्ट प्रथम कौन था? प्रतिहार वंश के राजनैतिक इतिहास में उसकी उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है? सामुदायिक विकास कार्यक्रम का क्या उद्देश्य है?
  71. प्रश्न- प्रतिहार वंश के शासक वत्सराज के विषय में आप क्या जानते हैं? उनकी उपलब्धियों को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  73. प्रश्न- नागभट्ट द्वितीय के विषय में बताते हुए उसकी राजनैतिक उपलब्धियों की चर्चा कीजिए।
  74. प्रश्न- पंचायती राज से आप क्या समझते हैं? ग्रामीण पुननिर्माण में पंचायतों के कार्यों एवं महत्व को बताइये।
  75. प्रश्न- "प्रतिहार वंश के शासकों में मिहिरभोज सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था।' स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- भारतीय ग्राम पंचायतों के दोषों की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- प्रतिहार वंश के शासक महेन्द्रपाल प्रथम के विषय में बताते हुए उसकी विजयों का भी उल्लेख कीजिए।
  78. प्रश्न- ग्राम पंचायतों का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
  79. प्रश्न- प्रतिहार शासक महिपाल प्रथम के व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- क्षेत्र पंचायत के संगठन तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों की शासन व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जिला पंचायत का संगठन तथा ग्रामीण समाज में इसकी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रतिहारकालीन सामाजिक और धार्मिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
  84. प्रश्न- भारत में स्थानीय शासन के सम्बन्ध में 'पंचायत राज' के सिद्धान्त व व्यवहार की आलोचना कीजिए।
  85. प्रश्न- नागभट्ट प्रथम की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- नगरपालिका क्या है? तथा नगरपालिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- प्रतिहार वंश के पतन पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- नगरीय स्वायत्त शासन की विवेचना कीजिए।
  89. प्रश्न- गुर्जर शासन का महत्व बताइए।
  90. प्रश्न- ग्राम सभा के प्रमुख कार्य बताइये।
  91. प्रश्न- प्रतिहार वंश का प्रसिद्ध शासक आप किसे मानते हैं?
  92. प्रश्न- ग्राम पंचायत की आय के प्रमुख साधन बताइये।
  93. प्रश्न- मिहिरभोज के आधिपत्य का विस्तार बताइए।
  94. प्रश्न- पंचायती व्यवस्था के चार उद्देश्य बताइये।
  95. प्रश्न- राजशेखर के ग्रन्थ के विषय में बताइए।
  96. प्रश्न- ग्राम पंचायत के चार अधिकार बताइये।
  97. प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष के क्या कारण थे? इसमें शामिल प्रमुख शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
  98. प्रश्न- न्याय पंचायत का गठन किस प्रकार किया जाता है?
  99. प्रश्न- सोलंकी वंश की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
  100. प्रश्न- ग्राम पंचायत से आप क्या समझते तथा ग्राम सभा तथा ग्राम पंचायत में क्या अन्तर है?
  101. प्रश्न- सोलंकी वंश के प्रमुख शासकों से अवगत कराइये।
  102. प्रश्न- ग्राम पंचायत की उन्नति के लिए सुझाव दीजिए।
  103. प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष के परिणाम पर टिप्पणी लिखिए।
  104. प्रश्न- ग्रामीण समुदाय पर पंचायत के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
  105. प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष में राष्ट्रकूटों की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
  106. प्रश्न- भारत में पंचायत राज संस्थाएँ बताइये।
  107. प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष में पालों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  108. प्रश्न- क्षेत्र पंचायत का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
  109. प्रश्न- सोलंकी वंश के इतिहास को जानने के साधनों से अवगत कराइये।
  110. प्रश्न- ग्राम पंचायत के महत्व को बढ़ाने के लिए सरकार के द्वारा क्या प्रयास किये गये हैं?
  111. प्रश्न- सोलंकी वंश के राजनैतिक इतिहास के विषय में बताइये।
  112. प्रश्न- नगर निगम के संगठनात्मक संरचना का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- परमार वंश का इतिहास जानने के साधनों का वर्णन कीजिए। इस वंश की उत्पत्ति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  114. प्रश्न- नगर निगम के भूमिका एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- परमार शासक मुंज के विषय में बताइए। उसके शासन काल की राजनैतिक उपलब्धियों की चर्चा कीजिए।
  116. प्रश्न- नगरीय स्वशासन संस्थाओं की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  117. प्रश्न- परमार नरेश भोज का परिचय दीजिए। भारतीय इतिहास में उसकी राजनैतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  118. प्रश्न- नगरीय निकायों की संरचना पर टिप्पणी लिखिए।
  119. प्रश्न- परमार वंश का प्रसिद्ध शासक आप किसे मानते हैं?
  120. प्रश्न- नगर पंचायत पर टिप्पणी लिखिए।
  121. प्रश्न- परमारों की कला पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- दबाव व हित समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  123. प्रश्न- परमार शासन व्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं?
  124. प्रश्न- दबाव समूह से आप क्या समझते हैं? दबाव समूहों के क्या लक्षण हैं? दबाव समूहों द्वारा अपनाई जाने वाली कार्यप्रणाली के विषय में बतायें।
  125. प्रश्न- परमार वंश के पतन का वर्णन कीजिए।
  126. प्रश्न- दबाव समूह अपने हित पूरा करने के लिए किस प्रकार कार्य करते हैं?
  127. प्रश्न- नवसाहसांकचरित में वर्णित परमारों के इतिहास के विषय में बताइए।
  128. प्रश्न- दबाव समूहों के महत्व पर प्रकाश डालिये।
  129. प्रश्न- भोज के उत्तराधिकारियों का वर्णन कीजिए।
  130. प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
  131. प्रश्न- किन साधनों से बंगाल के पाल वंश के विषय में जानकारी प्राप्त होती है? इसकी उत्पत्ति के विषय में बताइए।
  132. प्रश्न- दबाव समूह किसे कहते हैं? दबाव समूह के कार्यों को लिखिए। भारत की राजनीति में दबाव समूहों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
  133. प्रश्न- पाल नरेश धर्मपाल के विषय में बताते हुए उसकी उपलब्धियों को स्पष्ट कीजिए।
  134. प्रश्न- मतदान व्यवहार क्या है? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए।
  135. प्रश्न- पाल नरेश देवपाल के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी राजनैतिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  136. प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
  137. प्रश्न- भारतीय इतिहास में पाल वंश के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
  138. प्रश्न- दबाव समूहों के दोषों का वर्णन करें।
  139. प्रश्न- पालकालीन कला एवं स्थापत्य पर प्रकाश डालिए।
  140. प्रश्न- भारत में श्रमिक संघों की विशेषताएँ। टिप्पणी कीजिए।
  141. प्रश्न- धर्मपाल की पराजय के विषय में बताइए।
  142. प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- पालों की राजनैतिक सत्ता का चर्मोत्कर्ष बताइए।
  144. प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को दूर करने के सुझाव दीजिए।
  145. प्रश्न- हिन्दू शाही के पराक्रमी राजा "भीमदेव के विषय में विस्तृत रूप से बताइये।
  146. प्रश्न- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1996 के अंतर्गत चुनाव सुधार के संदर्भ में किये गये प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
  147. प्रश्न- हिन्दू शाही को विस्तृत रूप से बताइये।
  148. प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
  149. प्रश्न- हिन्दू शाही वंश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  150. प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
  151. प्रश्न- त्रिलोचनपाल एवं भीमपाल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  152. प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
  153. प्रश्न- महमूद गजनी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  154. प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  155. प्रश्न- मुस्लिम आक्रमण के समय उत्तर की राजनीतिक स्थिति का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  156. प्रश्न- अलगाव से आप क्या समझते हैं? अलगाववाद के कारण क्या हैं?
  157. प्रश्न- महमूद गजनवी के भारतीय आक्रमणों का वर्णन कीजिए।
  158. प्रश्न- भारतीय राजनीति में धर्म की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  159. प्रश्न- चन्देल वंश के इतिहास के साधनों का वर्णन करते हुए इस वंश की उत्पत्ति के सम्बन्ध में बताइए।
  160. प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक पक्ष को स्पष्ट कीजिए।
  161. प्रश्न- चन्देल नरेश यशोवर्मन कौन था? उसकी राजनैतिक उपलब्धियों पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
  162. प्रश्न- सकारात्मक राजनीतिक कार्यवाही से क्या आशय है? इसके लिए भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं?
  163. प्रश्न- चन्देल नरेश धंग के शासन काल एवं उसकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  164. प्रश्न- जाति को परिभाषित कीजिए। भारतीय राजनीति पर जातिगत प्रभाव का अध्ययन कीजिए। जाति के राजनीतिकरण की विवेचना भी कीजिए।
  165. प्रश्न- चन्देल शासक विद्याधर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का विवेचन कीजिए।
  166. प्रश्न- निर्णय प्रक्रिया में राजनीतिक दलों में जाति की क्या भूमिका है?
  167. प्रश्न- कीर्तिवर्मन कौन था? उसके शासन काल के विषय में बताते हुए उसकी विजयों का वर्णन कीजिए।
  168. प्रश्न- राज्यों की राजनीति को जाति ने किस प्रकार प्रभावित किया है?
  169. प्रश्न- चन्देल शासन काल में कला की क्या स्थिति थी?
  170. प्रश्न- क्षेत्रीयतावाद (Regionalism) से क्या अभिप्राय है? इसने भारतीय राजनीति को किस प्रकार प्रभावित किया है? क्षेत्रवाद के उदय के क्या कारण हैं?
  171. प्रश्न- चन्देलों के पतन के लिये कौन उत्तरदायी था?
  172. प्रश्न- भारतीय राजनीति पर क्षेत्रवाद के प्रभावों का अध्ययन कीजिए।
  173. प्रश्न- खजुराहो मन्दिरों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  174. प्रश्न- क्षेत्रवाद के उदय के लिए कौन-से तत्व जिम्मेदार हैं?
  175. प्रश्न- प्रतिहार साम्राज्य के पतन के बाद बुन्देलखण्ड (जेजाकभुक्ति) में किस वंश का उदय हुआ?
  176. प्रश्न- भारत में भाषा और राजनीति के सम्बन्धों पर प्रकाश डालिये।
  177. प्रश्न- महमूद गजनवी का चन्देलों पर आक्रमण' के विषय में बताइए।
  178. प्रश्न- उर्दू और हिन्दी भाषा को लेकर भारतीय राज्यों में क्या विवाद है? संक्षेप में चर्चा कीजिए।
  179. प्रश्न- चाहमान वंश के इतिहास जानने के साधनों को बताते हुए इसकी उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
  180. प्रश्न- भाषा की समस्या हल करने के सुझाव दीजिए।
  181. प्रश्न- चाहमान नरेश अणराज के विषय में आप क्या जानते हैं? उसके शासनकाल में हुए प्रमुख युद्धों का वर्णन कीजिए।
  182. प्रश्न- साम्प्रदायिकता से आप क्या समझते हैं? साम्प्रदायिकता के उदय के कारण और इसके दुष्परिणामों की चर्चा करते हुए इसको दूर करने के सुझाव बताइये। भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता का क्या प्रभाव पड़ा? समझाइये।
  183. प्रश्न- चाहमान शासक विग्रहराज चतुर्थ के राज्यकाल का मूल्यांकन कीजिए।
  184. प्रश्न- साम्प्रदायिकता के उदय के पीछे क्या कारण हैं?
  185. प्रश्न- पृथ्वीराज तृतीय के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी सफलताओं एवं असफलताओं परं विस्तृत लेख लिखिए।
  186. प्रश्न- साम्प्रदायिकता के दुष्परिणामों की चर्चा कीजिए।
  187. प्रश्न- चाहमानों की शासन व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  188. प्रश्न- साम्प्रदायिकता को दूर करने के सुझाव दीजिये।
  189. प्रश्न- शाकम्भरी के चाहमान (चौहान) का परिचय दीजिए।
  190. प्रश्न- भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
  191. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ की उपलब्धियाँ बताइए।
  192. प्रश्न- जाति व धर्म की राजनीति भारत में चुनावी राजनीति को कैसे प्रभावित करती है। क्या यह सकारात्मक प्रवृत्ति है या नकारात्मक?
  193. प्रश्न- पृथ्वीराजरासो पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  194. प्रश्न- "वर्तमान भारतीय राजनीति में धर्म, जाति तथा आरक्षण प्रधान कारक बन गये हैं।" इस पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
  195. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  196. प्रश्न- 'जातिवाद' और सम्प्रदायवाद प्रजातंत्र के दो बड़े शत्रु हैं। टिप्पणी करें।
  197. प्रश्न- चाहमानों का बुन्देलखण्ड पर आक्रमण बताइए।
  198. प्रश्न- उत्तर प्रदेश के बँटवारे की राजनीति को समझाइए।
  199. प्रश्न- गहड़वाल वंश का इतिहास जानने के साधनों का उल्लेख कीजिए। इसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में आप क्या जानते हैं?
  200. प्रश्न- जन राजनीतिक संस्कृति के विकास के कारण का वर्णन कीजिए।
  201. प्रश्न- गहड़वाल शासक गोविन्दचन्द्र के विषय में बताते हुए उसकी विजयों का उल्लेख कीजिए।
  202. प्रश्न- 'भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका' संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  203. प्रश्न- गहड़वाल नरेश जयचन्द्र का परिचय दीजिए। उसकी राजनीतिक सफलताओं तथा असफलताओं का मूल्यांकन कीजिए।
  204. प्रश्न- चुनावी राजनीति में भावनात्मक मुद्दे पर प्रकाश डालिए।
  205. प्रश्न- गहड़वाल नरेशों के 'शासन प्रबन्ध' पर एक लेख लिखिए।
  206. प्रश्न- भ्रष्टाचार से क्या अभिप्राय है? भ्रष्टाचार की समस्या के लिए कौन से कारण उत्तरदायी हैं? इस समस्या के समाधान के लिए उपाय बताइए।
  207. प्रश्न- गोविन्दचन्द्र गहड़वाल के विषय में आप क्या जानते हैं?
  208. प्रश्न- भ्रष्टाचार के लिए कौन-कौन से कारण उत्तरदायी हैं?
  209. प्रश्न- जयचन्द गहड़वाल के राज्यकाल की घटनाएँ बताइये।
  210. प्रश्न- भ्रष्टाचार उन्मूलन के कौन-कौन से उपाय हैं?
  211. प्रश्न- गोविन्दचन्द्र के किन राज्यों से कूटनीतिक सम्बन्ध थे? स्पष्ट कीजिए।
  212. प्रश्न- भारत में राजनैतिक, व्यापारिक-औद्योगिक तथा धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की विवेचना कीजिए।
  213. प्रश्न- कलचुरि वंश के शासक गांगेयदेव के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी विजयों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  214. प्रश्न- भ्रष्टाचार क्या है? भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
  215. प्रश्न- कलचुरि नरेश लक्ष्मीकर्ण के विषय में बताइए उसके शासन काल की प्रमुख राजनैतिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  216. प्रश्न- भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
  217. प्रश्न- कलचुरि वंश का इतिहास जानने के साधन बताइए।
  218. प्रश्न- भ्रष्टाचार के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
  219. प्रश्न- गांगेयदेव के राज्यकाल की घटनाएँ लिखिए।
  220. प्रश्न- सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की रोकथाम के सुझाव दीजिये।
  221. प्रश्न- कलचुरि वंश के पतन पर टिप्पणी लिखिए।
  222. प्रश्न- भ्रष्टाचार से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  223. प्रश्न- बंगाल के सेन वंश के विषय में आप क्या जानते हैं? यहाँ के शासक विजयसेन की राजनैतिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  224. प्रश्न- भ्रष्टाचार की विशेषताओं को बताइए।
  225. प्रश्न- सेन वंश के नरेश लक्ष्मणसेन का परिचय दीजिए। उसकी राजनैतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  226. प्रश्न- लोक जीवन में भ्रष्टाचार के कारण बताइये।
  227. प्रश्न- बंगाल के सेन वंश का संक्षिप्त इतिहास लिखिए।
  228. प्रश्न- राष्ट्रपति शासन क्या है? यह किन परिस्थितियों में लागू होता है? राष्ट्रपति शासन लगने से क्या परिवर्तन होता है?
  229. प्रश्न- अरबों के सिन्ध पर आक्रमण का विवेचन कीजिए।
  230. प्रश्न- दल-बदल की समस्या (भारतीय राजनैतिक दलों में)।
  231. प्रश्न- अरबों की सिन्ध विजय के परिणामों का परीक्षण कीजिए।
  232. प्रश्न- राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के सम्बन्धों पर वैधानिक व राजनीतिक दृष्टिकोण क्या है? उनके सम्बन्धों के निर्धारक तत्व कौन-से हैं?
  233. प्रश्न- महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण के विषय में आप क्या जानते हैं?
  234. प्रश्न- दल-बदल कानून (Anti Defection Law) पर टिप्पणी कीजिए।
  235. प्रश्न- गोरी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति बताइए।
  236. प्रश्न- संविधान के क्रियाकलापों पर पुनर्विलोकन हेतु स्थापित राष्ट्रीय आयोग (2002) की दलबदल नियम पद संस्तुति, टिप्पणी कीजिए।
  237. प्रश्न- मुहम्मद गोरी के भारतीय अभियानों का उल्लेख कीजिए।
  238. प्रश्न- 12वीं शताब्दी में मुसलमानों की विजय और हिन्दुओं की पराजय के क्या कारण थे? स्पष्ट कीजिए।
  239. प्रश्न- तुर्क आक्रमण के क्या कारण थे? इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
  240. प्रश्न- मुस्लिम आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय शासकों के प्रतिरोध पर प्रकाश डालिए।
  241. प्रश्न- महमूद गजनवी के आक्रमणों के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
  242. प्रश्न- अरबों के आक्रमण के समय भारत की दशा क्या थी?
  243. प्रश्न- तराइन के दूसरे युद्ध के परिणामों का वर्णन कीजिए।

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